Wednesday, April 16, 2008

अंकित का आतंक

मेरे कॉलेज आई आई टी गौहाटी की मेस सेवा से अक्सर लोग खफ़ा ही पाये जाते हैं| वही घिसी पिटी पुरानी आलू की सब्ज़ी या वही साम्भर चावल| लेकिन मेरे दोस्त अंकित को सब्ज़ियों से कोई गिला शिकवा नही| उसे परेशानी है तो सिर्फ़ रोटियों से| आम तौर पर शांत रहने वाला यह बालक रोटियों के मामले में कोई समझौता पसंद नही करता| और सामनाय्तः सबसे प्यार से बात करने वाला यह लड़का मेस कर्मचारियों पर बरसने में किसी किस्म का तकल्लुफ़ भी नही करता| "क्या भैय्या यह रोटी है की आटा? अच्छे से सिक्वा के लाओ" जैसे आदेश तो अब पुराने हो चुके हैं| आज तो हद ही हो गई - मेस कर्मचारी अन्दर से दो बार रोटी ले कर आया और तब भी अंकित ने उन्हें ठुकरा दिया| तीसरी बार ख़ास अंकित के लिए फूली हुई रोटियाँ आयीं तब जाके अंकित ने स्वीकारी|

अंकित के यह बड़े हुए नखरे देख मैं सोचने लगा की क्या अंकित की बीवी उसके यह सब नखरे सहेगी! जब मैंने उससे यह बात पूछी तोह उसने कहा - " कैसे नही सहेगी! और वैसे भी यह कोई नखरे नही हैं, इंसान को और कुछ मिले या न मिले, ढंग की रोटी तो नसीब होनी ही चाहिए!!" इसपर मैंने कहा - " यार मुझे लग रहा है की अगर तू अपनी बीवी को ऐसे नखरे दिखायेगा तो वोह रोटी तेरे मुहँ पे मार के कहेगी की "खानी है तो खाओ नही तो भाड़ में जाओ!", और फिर तुझे ढाबे पर खाना खाना होगा..." अंकित ने इसका जवाब दिया - " तो छोड़ दूँगा ऐसी औरत को मैं जो ठीक से रोटी भी न बना पाये!!"

तब मैंने सोचना शुरू किया की फिर अंकित अख़बार में शादी के इश्तेहार कैसे देगा -:
"चाहिए एक नर्म, फूली हुई और सिकी हुई लड़की ...... नहीं, रोटी बनाना जानने वाली लड़की..." , या फिर " चाहिए एक ऐसी सुकन्या जो पहचानती हो आटे और रोटी में फ़र्क!"

इस ही दौरान अंकित फिर चिल्लाया " भैय्या रोटी!", और उसकी पुकार सुनकर सभी मेस कर्मचारी तिथर बिथर हो गये!

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